राजकुमार वीरवर्धन एक बार अपने पिता महाराज की आज्ञा पर एक दुसरे राज्य के राजा के पास मित्रता का प्रस्ताव लेकर जा रहे थे | रास्ता लम्बा था और बीच में एक घना जंगल | वैसे तो राजकुमार ऐसे मौकों पर अकेले ही जाना पसंद करते थे, किन्तु महाराज की आज्ञा थी की एक विश्वासी व्यक्ति को अवश्य अपने साथ ले जाएं | अतः राजकुमार ने अपने मित्र सुकान्त को साथ आने का आग्रह किया | सुकान्त राजकुमार के बचपन के मित्र थे और राजसी सेना के महत्वपूर्ण अधिकारी भी थे |
दोने मित्र आपस में तरह तरह की बातें करते हुए अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए | भूख लगती तो राज्य के गांव वालो से खाना मिल जाता और आराम करने के लिए घने पेड़ों की छाव | बीच बीच में तेज घुरसवारी की मुकाबला भी हो जाती | कभी राजकुमार वीरवर्धन जीत जाते तो कभी उनके मित्र सुकान्त | इस तरह से मजे करते हुए वे लोग अपने राज्य के सीमान्त तक आ पहुंचे | सामने वह विशाल घना जंगल भी आ गया | सुकान्त ने कहा की अब हम दोनों साथ ही सावधानी पूर्वक चलेंगे |
अनुमानतः ७ दिन का रास्ता था जंगल के बीच से | पहला दिन बिना किसी विशेष बाधा के कट गया | उन्होंने तरह तरह के जंगली जानवर देखे | पर ना ही किसी जानवर ने उन दोनों को परेशान किया और न ही उन लोगों ने किसी जानवर को | रात के समय बारी बारी से पहरा देते हुए दोनों सो गए | संयोग ऐसा बना की कोई फल वाला पेड़ नहीं मिला जिसके फल खाकर दोनों अपनी भूख मिटा सकें | उनके पास जो भी पहले का बचा हुआ खाने का सामान था सब ख़तम हो गया था |
दोनों दोस्त की भूख के मारे बुरी हालत हो रही थी | सूरज भी ढल गया था | तभी उन्हें कुछ दूरी पर एक रौशनी सी दिखाई दी | उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था | रौशनी की तरफ घोड़ों को मोरा | कुछ दूर जाने पर देखते हैं की एक आलिशान भवन है | उसकी देखभाल करने के लिए जंगली कबीले के लोग थे | राजकुमार ने उनसे कहा की उन्हें भूख लगी है | परन्तु वे लोग राजकुमार की बात नहीं समझ पा रहे थे | उन्होंने आपस में कुछ विचित्र भाषा में बात चीत की जो की वीरभद्र और सुकान्त नहीं समझ पाए | उनमें से एक भवन के अंदर गया | थोड़ी ही देर में एक महात्मा बाहर आये |
महात्मा ने राजकुमार से सारा हाल समाचार जाना | उन्होंने कहा की वह पहले एक बहुत ही सफल व्यापारी थे | बाद में जब उनका मन सांसारिक जीवन से भर गया तो उन्होंने इस जंगल के बीच अपना घर बनाया | अब वह यही पर रहते हैं और प्रभु भजन करते हैं | पास के कबीले के लोग उनके पास रहना पसंद करते हैं और उनकी सुरक्षा करते हैं | उन्होंने राजकुमार और उनके मित्र को रात भवन में बिताने का निमंत्रण दिया | वीरभद्र और सुकान्त के लिए तो यह मन मांगी बात हो गयी |
वे दोनों जब भवन के अंदर गए तो उन्होंने देखा की बहुत सारे तरह तरह के जानवर भी वहां थे | पेड़ों पर तरह तरह की चिड़ियाँ थी | कई तरह के जानवर खूंटे से बंधे थे और कुछ तो बड़े से पिंजरे के अंदर भी बंद थे | राजकुमार और सुकान्त को देखकर न जाने उन सब पशु पक्षियों को क्या हो गया | सभी तरह तरह की आवाजें निकलने लगे | तभी महात्मा ने एक जोर की हुंकार की और सभी चुप | यह देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ |
फिर महात्माजी उन्हें एक कमरे में बिठा कर खाने का प्रबंध करने चले गए | सुकान्त को यह सब बहुत खटक रहा था | उसने राजकुमार से कहा की वह थोड़ा आस पास देख कर आता है | और फिर सुकान्त महात्मा के पीछे चुपके से चल पड़ा | उसने देखा की सारे जानवर उसकी तरफ टक टक देख रहे हैं | लेकिन सब चुप हैं | ऐसा लगता है की बहुत भयभीत हों | वह रसोई घर की तरफ गया | वहां पर खिड़की के नीचे खरा होकर वह सारी बात चुप चाप सुनने लगा | महात्मा कबीले वालों को जोर जोर से कुछ करने के लिए कह रहे थे | उनकी बात को सुनकर सभी कबीले वाले काफी खुश हो कर उत्साह में काम करने लगे | फिर जैसे की महात्मा खुद से बात करने लगे - " अहा आज तो मजा आ गया | अब इनको मैं बेहोश करके जादू से इन्हें भी जानवर बना दूंगा | मेरे पास अब १०० इंसानी जानवर होने ही वाले हैं | फिर इन सबकी बलि होगी नरपिशाच के सामने | और मुझे मिलेगी अद्भुत शैतानी ताकत | अहा कितना मजा आएगा | "
सुकान्त सब समझ गया | वह चुपके से राजकुमार के पास वापस आ गया | उसने राजकुमार को सब बात बता दी | वीरभद्र ने सब सुनकर कहा - " चलो हमारा यहाँ आना बहुत जरूरी था | इस दुष्ट ढोंगी जादूगर को मारकर हम इस आतंक को ख़तम कर देते हैं | " जब थोड़ी देर बाद महात्मा आये तो वीरभद्र ने कहा - " महात्माजी हम बिना संध्या आरती किये हुए भोजन नहीं करते हैं | एक काम करते हैं पहले हम इश्वर भजन करेंगे थोड़ी देर फिर भोजन करेंगे | " यह सुनकर वह ढोंगी साधू घबरा गया | वीरभद्र और सुकान्त ने जोर से शिव भजन करना आरम्भ कर दिया | उस ढोंगी साधू से यह सब सुना न गया | थोड़ी ही देर में उसका चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा | भला शैतानी शक्ति को प्रभु भजन कैसे सुहाए | उसने साधू का भेष त्याग दिया और अपने असली दुष्ट जादूगर के रूप में आ गया |
ऐसा होना था की वीरभद्र और सुकान्त ने अपनी तलवार उसके सामने तान दी | राजकुमार ने कहा - " चालबाज ढोंगी , आज तेरा खेल ख़तम | इससे पहले की में तेरे प्राण ले लूं , जल्दी से सब को अपनी माया से मुक्त कर | " जादूगर बहुत ही डर गया | उसने राजकुमार से कहा की अगर भवन में उपस्थित शैतान की मूर्ती को नष्ट कर दिया जाए तो सभी कैदी मुक्त हो जायेंगे | राजकुमार और सुकान्त जादूगर के साथ शैतान की मूर्ति के पास गए | वहां तरह तरह के सांप और बिच्छू उस मूर्ति के चारो ओर मंडरा रहे थे | राजकुमार ने अपना भाला उठाया और निशाना लगा कर मूर्ति के सर पर दे मारा | यह होते ही सारे कबीले वाले जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे | फिर वो सब तरह तरह के जंगली जानवर बन गए | कोई भेड़िया तो कोई लकड़बग्घा | फिर सब जंगल की तरफ भागे | और भवन में कैद सारे पशु पक्षी मनुष्य रूप में आ गए |
सब राजकुमार और उनके मित्र की इस बहादुरी के गुण गान करने लगे | वे सब जंगल से गुजरने वाले पथिक थे जो की जादूगर के चक्कर में फस कर यहाँ कैद हो गए थे | राजकुमार और सुकान्त ने जादूगर को रस्सियों की मजबूत बंधन में बंधा और उन पथिकों से कहा की - " इस धोखेबाज को राजा के पास ले जाइये | वही इस का उचित दंड देंगे | "
फिर राजकुमार और सुकान्त ने सबके साथ भोजन किया और वहां से अगले सुबह अपनी आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े |
(c) Anup Mayank 2019
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दोने मित्र आपस में तरह तरह की बातें करते हुए अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए | भूख लगती तो राज्य के गांव वालो से खाना मिल जाता और आराम करने के लिए घने पेड़ों की छाव | बीच बीच में तेज घुरसवारी की मुकाबला भी हो जाती | कभी राजकुमार वीरवर्धन जीत जाते तो कभी उनके मित्र सुकान्त | इस तरह से मजे करते हुए वे लोग अपने राज्य के सीमान्त तक आ पहुंचे | सामने वह विशाल घना जंगल भी आ गया | सुकान्त ने कहा की अब हम दोनों साथ ही सावधानी पूर्वक चलेंगे |
अनुमानतः ७ दिन का रास्ता था जंगल के बीच से | पहला दिन बिना किसी विशेष बाधा के कट गया | उन्होंने तरह तरह के जंगली जानवर देखे | पर ना ही किसी जानवर ने उन दोनों को परेशान किया और न ही उन लोगों ने किसी जानवर को | रात के समय बारी बारी से पहरा देते हुए दोनों सो गए | संयोग ऐसा बना की कोई फल वाला पेड़ नहीं मिला जिसके फल खाकर दोनों अपनी भूख मिटा सकें | उनके पास जो भी पहले का बचा हुआ खाने का सामान था सब ख़तम हो गया था |
दोनों दोस्त की भूख के मारे बुरी हालत हो रही थी | सूरज भी ढल गया था | तभी उन्हें कुछ दूरी पर एक रौशनी सी दिखाई दी | उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था | रौशनी की तरफ घोड़ों को मोरा | कुछ दूर जाने पर देखते हैं की एक आलिशान भवन है | उसकी देखभाल करने के लिए जंगली कबीले के लोग थे | राजकुमार ने उनसे कहा की उन्हें भूख लगी है | परन्तु वे लोग राजकुमार की बात नहीं समझ पा रहे थे | उन्होंने आपस में कुछ विचित्र भाषा में बात चीत की जो की वीरभद्र और सुकान्त नहीं समझ पाए | उनमें से एक भवन के अंदर गया | थोड़ी ही देर में एक महात्मा बाहर आये |
महात्मा ने राजकुमार से सारा हाल समाचार जाना | उन्होंने कहा की वह पहले एक बहुत ही सफल व्यापारी थे | बाद में जब उनका मन सांसारिक जीवन से भर गया तो उन्होंने इस जंगल के बीच अपना घर बनाया | अब वह यही पर रहते हैं और प्रभु भजन करते हैं | पास के कबीले के लोग उनके पास रहना पसंद करते हैं और उनकी सुरक्षा करते हैं | उन्होंने राजकुमार और उनके मित्र को रात भवन में बिताने का निमंत्रण दिया | वीरभद्र और सुकान्त के लिए तो यह मन मांगी बात हो गयी |
वे दोनों जब भवन के अंदर गए तो उन्होंने देखा की बहुत सारे तरह तरह के जानवर भी वहां थे | पेड़ों पर तरह तरह की चिड़ियाँ थी | कई तरह के जानवर खूंटे से बंधे थे और कुछ तो बड़े से पिंजरे के अंदर भी बंद थे | राजकुमार और सुकान्त को देखकर न जाने उन सब पशु पक्षियों को क्या हो गया | सभी तरह तरह की आवाजें निकलने लगे | तभी महात्मा ने एक जोर की हुंकार की और सभी चुप | यह देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ |
फिर महात्माजी उन्हें एक कमरे में बिठा कर खाने का प्रबंध करने चले गए | सुकान्त को यह सब बहुत खटक रहा था | उसने राजकुमार से कहा की वह थोड़ा आस पास देख कर आता है | और फिर सुकान्त महात्मा के पीछे चुपके से चल पड़ा | उसने देखा की सारे जानवर उसकी तरफ टक टक देख रहे हैं | लेकिन सब चुप हैं | ऐसा लगता है की बहुत भयभीत हों | वह रसोई घर की तरफ गया | वहां पर खिड़की के नीचे खरा होकर वह सारी बात चुप चाप सुनने लगा | महात्मा कबीले वालों को जोर जोर से कुछ करने के लिए कह रहे थे | उनकी बात को सुनकर सभी कबीले वाले काफी खुश हो कर उत्साह में काम करने लगे | फिर जैसे की महात्मा खुद से बात करने लगे - " अहा आज तो मजा आ गया | अब इनको मैं बेहोश करके जादू से इन्हें भी जानवर बना दूंगा | मेरे पास अब १०० इंसानी जानवर होने ही वाले हैं | फिर इन सबकी बलि होगी नरपिशाच के सामने | और मुझे मिलेगी अद्भुत शैतानी ताकत | अहा कितना मजा आएगा | "
सुकान्त सब समझ गया | वह चुपके से राजकुमार के पास वापस आ गया | उसने राजकुमार को सब बात बता दी | वीरभद्र ने सब सुनकर कहा - " चलो हमारा यहाँ आना बहुत जरूरी था | इस दुष्ट ढोंगी जादूगर को मारकर हम इस आतंक को ख़तम कर देते हैं | " जब थोड़ी देर बाद महात्मा आये तो वीरभद्र ने कहा - " महात्माजी हम बिना संध्या आरती किये हुए भोजन नहीं करते हैं | एक काम करते हैं पहले हम इश्वर भजन करेंगे थोड़ी देर फिर भोजन करेंगे | " यह सुनकर वह ढोंगी साधू घबरा गया | वीरभद्र और सुकान्त ने जोर से शिव भजन करना आरम्भ कर दिया | उस ढोंगी साधू से यह सब सुना न गया | थोड़ी ही देर में उसका चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा | भला शैतानी शक्ति को प्रभु भजन कैसे सुहाए | उसने साधू का भेष त्याग दिया और अपने असली दुष्ट जादूगर के रूप में आ गया |
ऐसा होना था की वीरभद्र और सुकान्त ने अपनी तलवार उसके सामने तान दी | राजकुमार ने कहा - " चालबाज ढोंगी , आज तेरा खेल ख़तम | इससे पहले की में तेरे प्राण ले लूं , जल्दी से सब को अपनी माया से मुक्त कर | " जादूगर बहुत ही डर गया | उसने राजकुमार से कहा की अगर भवन में उपस्थित शैतान की मूर्ती को नष्ट कर दिया जाए तो सभी कैदी मुक्त हो जायेंगे | राजकुमार और सुकान्त जादूगर के साथ शैतान की मूर्ति के पास गए | वहां तरह तरह के सांप और बिच्छू उस मूर्ति के चारो ओर मंडरा रहे थे | राजकुमार ने अपना भाला उठाया और निशाना लगा कर मूर्ति के सर पर दे मारा | यह होते ही सारे कबीले वाले जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे | फिर वो सब तरह तरह के जंगली जानवर बन गए | कोई भेड़िया तो कोई लकड़बग्घा | फिर सब जंगल की तरफ भागे | और भवन में कैद सारे पशु पक्षी मनुष्य रूप में आ गए |
सब राजकुमार और उनके मित्र की इस बहादुरी के गुण गान करने लगे | वे सब जंगल से गुजरने वाले पथिक थे जो की जादूगर के चक्कर में फस कर यहाँ कैद हो गए थे | राजकुमार और सुकान्त ने जादूगर को रस्सियों की मजबूत बंधन में बंधा और उन पथिकों से कहा की - " इस धोखेबाज को राजा के पास ले जाइये | वही इस का उचित दंड देंगे | "
फिर राजकुमार और सुकान्त ने सबके साथ भोजन किया और वहां से अगले सुबह अपनी आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े |
(c) Anup Mayank 2019
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