इस राख को इतना न कुरेदो कहीं चिंगारी दबी होगी
ना खुरेचो मेरे जज्बातों को सूखे से अश्क छलक जायेंगे।
ऐ शाम तेरे दीदार की तमन्ना तो है मगर जल्दी नहीं,
थोड़ी देर तो ठहर अभी धूप ढली कहाँ है।
दिल की हसरतें हैं तो अनेक मगर इंतजाम नहीं
साकी थोड़ी सी पिला दे तो बीमार को आराम मिले।
ना खुरेचो मेरे जज्बातों को सूखे से अश्क छलक जायेंगे।
ऐ शाम तेरे दीदार की तमन्ना तो है मगर जल्दी नहीं,
थोड़ी देर तो ठहर अभी धूप ढली कहाँ है।
दिल की हसरतें हैं तो अनेक मगर इंतजाम नहीं
साकी थोड़ी सी पिला दे तो बीमार को आराम मिले।
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