बालेवाड़ी की वो सन सन करती हवा
मेरी कांच की खिड़कियों से टकराती हुई
एक दस्तक देती है कि बाहर निकल
जिन्दगी पुकारती है बाहर निकल
काम बहुत थे और थी जद्दोजहद बड़ी
मन को समझाता बस एक और फिर सही
मगर मन को रोक न पाया मैं
ऊंची उठती उन लहरों को रोक न पाया मैं
बंद किये सारे झमेले के पिटारे
खोला मन का वो कोना
फिर निकल ही गया बाहर
जिंदगी से कहा चलो मुस्कुराएँ।
मेरी कांच की खिड़कियों से टकराती हुई
एक दस्तक देती है कि बाहर निकल
जिन्दगी पुकारती है बाहर निकल
काम बहुत थे और थी जद्दोजहद बड़ी
मन को समझाता बस एक और फिर सही
मगर मन को रोक न पाया मैं
ऊंची उठती उन लहरों को रोक न पाया मैं
बंद किये सारे झमेले के पिटारे
खोला मन का वो कोना
फिर निकल ही गया बाहर
जिंदगी से कहा चलो मुस्कुराएँ।
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