Friday, April 19, 2019

राजकुमार वीरवर्धन और शैतानी जादूगर

राजकुमार वीरवर्धन एक बार अपने पिता  महाराज की आज्ञा पर एक दुसरे राज्य के राजा के पास मित्रता का प्रस्ताव लेकर जा रहे थे | रास्ता लम्बा था और बीच में एक घना जंगल | वैसे तो राजकुमार ऐसे मौकों पर अकेले ही जाना पसंद करते थे, किन्तु महाराज की आज्ञा थी की एक विश्वासी व्यक्ति को अवश्य अपने साथ ले जाएं | अतः राजकुमार ने अपने मित्र सुकान्त को साथ आने का आग्रह किया | सुकान्त राजकुमार के बचपन के मित्र थे और राजसी सेना के महत्वपूर्ण अधिकारी भी थे |

दोने मित्र आपस में तरह तरह की बातें करते हुए अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए | भूख लगती तो राज्य के गांव वालो से खाना मिल जाता और आराम करने के लिए घने पेड़ों की छाव | बीच बीच में तेज घुरसवारी की मुकाबला भी हो जाती | कभी राजकुमार वीरवर्धन जीत जाते तो कभी उनके मित्र सुकान्त | इस तरह से मजे करते हुए वे लोग अपने राज्य के सीमान्त तक आ पहुंचे | सामने वह विशाल घना जंगल भी आ गया | सुकान्त ने कहा की अब हम दोनों साथ ही सावधानी पूर्वक चलेंगे |

अनुमानतः ७  दिन का रास्ता था जंगल के बीच से | पहला दिन बिना किसी विशेष बाधा के कट गया | उन्होंने तरह तरह के जंगली जानवर देखे | पर ना ही किसी जानवर ने उन दोनों को परेशान किया और न ही उन लोगों ने किसी जानवर को | रात के समय बारी बारी से पहरा देते हुए दोनों सो गए | संयोग ऐसा बना की कोई  फल वाला पेड़ नहीं मिला जिसके फल खाकर दोनों अपनी भूख मिटा सकें |  उनके पास जो भी पहले का बचा हुआ खाने का सामान था सब ख़तम हो गया था |

दोनों दोस्त की भूख के मारे बुरी हालत हो रही थी | सूरज भी ढल गया था | तभी उन्हें कुछ दूरी पर एक रौशनी सी दिखाई दी | उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था | रौशनी की तरफ घोड़ों को मोरा | कुछ दूर जाने पर देखते हैं की एक आलिशान भवन है | उसकी देखभाल करने के लिए जंगली कबीले के लोग थे | राजकुमार ने उनसे कहा की उन्हें भूख लगी है | परन्तु वे लोग राजकुमार की बात नहीं समझ पा रहे थे | उन्होंने आपस में कुछ विचित्र भाषा में बात चीत की जो की वीरभद्र और सुकान्त नहीं समझ पाए | उनमें से एक भवन के अंदर गया | थोड़ी ही देर में एक महात्मा बाहर आये |

महात्मा ने राजकुमार से सारा हाल समाचार जाना | उन्होंने कहा की वह पहले एक बहुत ही सफल व्यापारी थे | बाद में जब उनका मन सांसारिक जीवन से भर  गया  तो उन्होंने इस जंगल के बीच अपना घर बनाया | अब वह यही पर रहते हैं और प्रभु भजन करते हैं | पास के कबीले के लोग उनके पास रहना पसंद करते हैं और उनकी सुरक्षा करते हैं | उन्होंने राजकुमार और उनके मित्र को रात भवन में बिताने का निमंत्रण दिया | वीरभद्र और सुकान्त के लिए तो यह मन मांगी बात हो गयी |

वे दोनों जब भवन के अंदर गए तो उन्होंने देखा की बहुत सारे तरह तरह के जानवर भी वहां थे | पेड़ों पर तरह तरह की चिड़ियाँ थी | कई तरह के जानवर खूंटे से बंधे थे और कुछ तो बड़े से पिंजरे के अंदर भी बंद थे | राजकुमार और सुकान्त को देखकर न जाने उन सब पशु पक्षियों को क्या हो गया | सभी तरह तरह की आवाजें निकलने लगे | तभी महात्मा ने एक जोर की हुंकार की और सभी चुप | यह देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ |

फिर महात्माजी उन्हें एक कमरे में बिठा कर खाने का प्रबंध करने चले गए | सुकान्त को यह सब बहुत खटक रहा था | उसने राजकुमार से कहा की वह थोड़ा आस पास देख कर आता है | और फिर सुकान्त महात्मा के पीछे चुपके से चल पड़ा | उसने देखा की सारे जानवर उसकी तरफ टक टक देख रहे हैं | लेकिन सब चुप हैं | ऐसा लगता है की बहुत भयभीत हों | वह रसोई घर की तरफ गया | वहां पर खिड़की के नीचे खरा होकर वह सारी बात चुप चाप सुनने लगा | महात्मा कबीले वालों को जोर जोर से कुछ करने के लिए कह रहे थे | उनकी बात को सुनकर सभी कबीले वाले काफी खुश हो कर उत्साह में काम करने लगे | फिर जैसे की महात्मा खुद से बात करने लगे - " अहा आज तो मजा आ गया | अब इनको मैं बेहोश करके जादू से इन्हें भी जानवर बना दूंगा | मेरे पास अब १०० इंसानी जानवर होने ही वाले हैं | फिर इन सबकी बलि होगी नरपिशाच के सामने | और मुझे मिलेगी अद्भुत शैतानी ताकत | अहा कितना मजा आएगा | "

सुकान्त सब समझ गया | वह चुपके से राजकुमार के पास वापस आ गया | उसने राजकुमार को सब बात बता दी | वीरभद्र ने सब सुनकर कहा - " चलो हमारा यहाँ आना बहुत जरूरी था | इस दुष्ट ढोंगी जादूगर को मारकर हम इस आतंक को ख़तम कर देते हैं | " जब थोड़ी देर बाद महात्मा आये तो वीरभद्र ने कहा - " महात्माजी हम बिना संध्या आरती किये हुए भोजन नहीं करते हैं | एक काम करते हैं पहले हम इश्वर भजन करेंगे थोड़ी देर फिर भोजन करेंगे | " यह सुनकर वह  ढोंगी साधू घबरा गया | वीरभद्र और सुकान्त ने जोर से शिव भजन करना आरम्भ कर दिया | उस ढोंगी साधू से यह सब सुना न गया | थोड़ी ही देर में उसका चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा | भला शैतानी शक्ति को प्रभु भजन कैसे सुहाए | उसने साधू का भेष त्याग दिया और अपने असली दुष्ट जादूगर के रूप में आ गया |

ऐसा होना था की वीरभद्र और सुकान्त ने अपनी तलवार उसके सामने तान दी | राजकुमार ने कहा - " चालबाज ढोंगी , आज तेरा खेल ख़तम | इससे पहले की में तेरे प्राण ले लूं , जल्दी से सब को अपनी माया से मुक्त कर | "  जादूगर बहुत ही डर गया | उसने राजकुमार से कहा की अगर भवन में उपस्थित शैतान की मूर्ती को नष्ट कर दिया जाए तो सभी कैदी मुक्त हो जायेंगे | राजकुमार और सुकान्त जादूगर के साथ शैतान की मूर्ति के पास गए | वहां तरह तरह के सांप और बिच्छू उस मूर्ति के चारो ओर मंडरा रहे थे | राजकुमार ने अपना भाला उठाया और निशाना लगा कर मूर्ति के सर पर दे मारा | यह होते ही सारे कबीले वाले जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे | फिर वो सब तरह तरह के जंगली जानवर बन गए | कोई भेड़िया तो कोई लकड़बग्घा | फिर सब जंगल की तरफ भागे | और भवन में कैद सारे पशु पक्षी मनुष्य रूप में आ गए |

सब राजकुमार और उनके मित्र की इस बहादुरी के गुण गान करने लगे | वे सब जंगल से गुजरने वाले पथिक थे जो की जादूगर के चक्कर में फस कर यहाँ कैद हो गए थे | राजकुमार और सुकान्त ने जादूगर को रस्सियों की मजबूत बंधन में बंधा और उन पथिकों से कहा की - " इस धोखेबाज को राजा के पास ले जाइये | वही इस का उचित दंड देंगे | "

फिर राजकुमार और सुकान्त ने सबके साथ भोजन किया और वहां से अगले सुबह अपनी आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े |

(c) Anup Mayank 2019

पहले की कहानी 

Tuesday, April 16, 2019

बूनरोड - भाग्य विजेता

क्या आप गहरे समुद्र में अकेले तट से २२० किलोमीटर की दूरी पर उम्मीद को जीवित रखते हुए संघर्ष कर सकते हैं | थाईलैंड में यह अद्भुत कारनामा एक कुत्ते ने कर दिखाया | वह ना जाने कितने समय से अकेले तैर रहा था | थक कर चूर हो गया था | पर हार नहीं मानी |   इसी कारन उसे ढूंढने वालों ने उसका नाम बूनरोड यानी की भाग्य विजेता रख दिया | यह कहानी हमें आशावान रहने की सीख देती है | 

Sunday, April 7, 2019

Myth vs Reality

Some days back I was having snacks with a few of my colleagues. The topics of discussion were varied and at one point in time, we started discussing the movie 300. We all agreed that it was a delight to watch such muscularly toned fighters. 

The real trouble started when I mentioned that it is based on real story of Xerxes's invasion of Greece. However, people were not ready to believe it as being real. They were insistent on it being a mythical story just like so many mythical stories we have read in the Indian context.

Which brings the question is that why was this person, who with a good educational background is opposing instead of checking the facts. Unless we are willing to challenges our own learnings how will we separate myth from reality?